प्रशासन में सबसे बड़ी कमी यह है कि फील्ड में काम करने वाला कर्मचारी या एग्जीक्यूटिव रैंक तक का अधिकारी नीति निर्माण से नहीं जुड़ा होता एवं नियम बनाने वाले को फील्ड का वास्तविक एक्सपोजर नहीं होता, उन्हें ट्रेनिंग के दौरान जो फील्ड एक्सपोजर दिया जाता है वह भी किसी बच्चे को हाथ पकड़ कर चलाने जैसा होता है,या यह कहें कि उन्हें किसी म्यूजियम में फील्ड का काम दिखाने जैसा एक्सपीरियंस होता है,देश भर के सभी प्रशासनिक अधिकारी इसी प्रकार का फील्ड एक्सपीरियंस लेते हैं
शिक्षा विभाग में भी बिल्कुल यही स्थिति है,यहां जो नियम बनाने वाले हैं वह क्लास रूम का हिस्सा नहीं होते, या कभी रहे भी होते हैं तो, वह समय भी वेतन हासिल करने एवं अनुभव प्रमाण पत्र बनाने के लिए होता है, असल में वह शुरू से ही बच्चों का सामना न कर पाने के कारण, प्रशासन की पूंछ पकड़कर चलने का अभ्यास कर चुके होते हैं,या इधर उधर गुलाटी लगाकर बाबूगिरी करते हुए समय काट रहे होते हैं,जबकि शिक्षा विभाग में जितने भी नवाचार या शोध पत्र जारी कर रहे होते हैं वह भी यही होते हैं, शिक्षक आज भी क्लास के अंदर इनके नियमों से जूझता हुआ कोई रास्ता निकाल रहा होता है
मनीष भार्गव